महाराज छत्रसाल की नगरी का नाम पुनः छत्रपुर हो
बुन्देलखण्ड का विशाल साम्राज्य स्थापित करने वाले वीर शिरोमणि महाराज छत्रसाल ने सन् 1707 में पन्ना और टीकमगढ़ के मध्य एक छोटी सी नगरी बसाई और उसे अपना नाम देकर गौरवान्वित किया। इस प्रकार छत्रपुर का प्रादुर्भाव हुआ।

महाराज छत्रसाल
कालान्तर में मुगल और ब्रिटिश काल में इतिहास के गलियारों से गुजरते गुजरते इसका नाम विकृत होकर छतरपुर हो गया।
छत्रपुर की स्थापना के बाद देश और काल के विभिन्न अंतरालों में इस नगर को मूल नाम के अतिरिक्त, छतपुर, छत्तरपुर और छतरपुर नामों से संबोधित किया गया।
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में रियासत का काम काज हिन्दी के साथ उर्दू भाषा में भी निष्पादित होने लगा था। उर्दू लिपि में छत्रपुर नहीं लिखा जा सकता था – छतरपुर अथवा छत्तरपुर ही लिखा जा सकता था। अतः उच्चारण की दृष्टि से सुगम होने के कारण छतरपुर शब्द का प्रयोग होने लगा किन्तु तत्कालीन मोहरों में हिन्दी में छत्रपुर ही लिखा जाता रहा। देखिए दरबार की सन् 1878 की मोहर।

दरबार की मोहर
अंग्रेज अपनी विशेष उच्चारण शैली के कारण इस नगर का नाम अंग्रेजी में काम काज करने वाले तत्कालीन केन्द्रीय विभागों में आरंभ में छत्तरपुर का प्रयोग किया जाने लगा जो बाद में छतरपुर हो गया। देखिए दिनांक 29 मार्च सन् 1929 की डाक मोहर।

डाक मोहर
राज्य में प्रयुक्त जनरल स्टाम्प पेपरों में सदैव छत्रपुर स्टेट बुन्देलखंड मुद्रित होता था। देखिए ऐसे ही एक स्टाम्प पेपर का अंश। स्टाक शेष रहने के कारण ऐसे स्टाम्प स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तक उपयोग में लाए जाते रहे।

जनरल स्टाम्प
सन् 1949 के अन्त तक विभिन्न मूल्यों के ऐसे जनरल स्टाम्प और टिकिट राज्य के न्यायालयों में प्रयुक्त होते देखे गए हैं।
परतंत्र भारत में तो इस नगर का मूल नाम शासन के रिकार्ड में किसी न किसी प्रकार आंशिक रूप से अस्तित्व में बना रहा किन्तु स्वाधीन भारत में इसे सुरक्षा न मिल सकी तथा सभी केन्द्रीय तथा राज्य की मोहरों और मुद्रित स्टेशनरी से छत्रपुर शब्द विलुप्त हो गया।
पुनर्जागरण
किसी देश प्रान्त अथवा नगर की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए किए जाने वाले प्रयासों में उसके वास्तविक नाम को पुनस्र्थापित करना भी अपेक्षित होता है।
बीसवीं सदी के अंतिम दशक में देश के विभिन्न भागों में, इस दिशा में सार्थक आंदोलन हुए जिनके फल स्वरूप कई महत्वपूर्ण नगरों और महानगरों के नाम तर्क संगत आधार पर अधिकारिक रूप से परिवर्तित किए गए।
बंबई से मुंबई
सत्रहवीं सदी के आरंभ में महाराष्ट्र के अंचलों में जिस द्वीप समूह को मुंबा देवी अथवा मुंबा आई (माता) के नाम पर मुंबई कहा जाता था, वह पुर्तगालियों के अधीन था।
पुर्तगाली इसे बौम बैम कहते थे जिसका अर्थ अच्छी खाड़ी होता है। सन 1661 में पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन का विवाह ब्रिटेन के सम्राट चार्लस् द्वितीय से हो गया और यह उपनिवेश पुर्तगालियों द्वारा सम्राट को उपहार स्वरूप भेंट कर दिया गया।
अंग्रेजी शासनकाल में यह नाम बिगड़कर बाॅम्बे अथवा बंबई हो गया। महाराष्ट्र में बीसवीं सदी के अंतिम दशक में साँस्कृतिक विरासत की रक्षार्थ, नाम परिवर्तन के लिए हुए आन्दोलन के फलस्वरूप सन् 1995 में इस महानगर का नाम अधिकारिक रूप से पुनः मुंबई कर दिया गया।
मद्रास से चेन्नई
सत्रहवीं सदी के मध्य में चन्द्रगिरि के राजा ने अंगे्रजों को मद्रासपट्टनम नगर के निकट एक किला निर्मित करने की अनुमति दे दी थी। इस किले के निकट स्थानीय लोगों ने चेन्नापटनम नाम से एक और नगर बसाया। कालान्तर में दोनों नगर प्रसार के फलस्वरूप एक हो गए किन्तु अंगे्रजों को इस संयुक्त उपनिवेश का संक्षिप्त नाम मद्रास अधिक सरल प्रतीत हुआ। मुंबई के पश्चात अगले वर्ष 1996 में, दक्षिण भारतीयों की भावना के अनुरूप मद्रास अथवा मैड्रास का नाम चेन्नई कर दिया गया।
कलकत्ता से कोलकाता
अंग्रेजों के शासनकाल में माँ काली के नाम पर विख्यात नगर कालीकाता जिसे कोलकाता भी कहा जाता था, बिगड़कर कैलकटा अथवा कलकत्ता हो गया था। मुंबई और चेन्नई की तरह इस महानगर में भी नाम परिवर्तन की माँग बढ़ने के फलस्वरूप सन् 2001 में इसका नाम परिवर्तित कर पुनः कोलकाता कर दिया गया।
इस कड़ी में अब तक दर्जनों नगरों के नाम संशोधित हो चुके हैं जिनमें से कुछ नगरों के परिवर्तित नाम प्रस्तुत हैं।
पूना – पुणे
वर्धा – सेवाग्राम
त्रिवेन्द्रम – तिरुवनन्तपुरम
गोटेगाँव – श्रीधाम
बड़ोदा – वड़ोदरा
बनारस – वाराणसी
भेलसा – विदिशा
बैंगलोर – बैंगलुरु
कोचीन – कोच्चि
गौहाटी – गुवाहाटी
पालघाट – पालक्कड़
बर्दवान – बर्धमान
गुड़गाँव – गुरुग्राम
राज्यों का नाम परिवर्तन
नगरों के नामों के परिवर्तन के साथ राज्यों के नाम भी परिवर्तित किए गए हैं जिनके कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं।
पौंडीचेरी – पुडूचेरी
उत्तरांचल – उत्तराखण्ड
उड़ीसा – ओड़िशा
तहसील का नाम भी परिवर्तित
विगत वर्षों में छतरपुर ज़िले की ही एक तहसील का नाम परिवर्तित हो चुका है।
लौंड़ी – लवकुशनगर
यह परिवर्तन वहाँ के निवासियों की उत्तम सोच और जागृति का परिणाम है।
छतरपुर से छत्रपुर क्यों नहीं ?
नगरों, महानगरों और राज्यों के विकृत हुए अथवा अनुपयुक्त नामों के शुद्धिकरण की श्रृंखला का विस्तार इस नगर को अब तक स्पर्श नहीं कर पाया है अतएव अब स्वजागरण की आवश्यकता है।
छत्रपुर का छत्र अर्थपूर्ण है जबकि छतर अर्थहीन है। शब्द का मन पर तात्कालिक प्रभाव होता है। छत्रपुर लिखने अथवा बोलने से स्वतः ही एक गौरवशाली अतीत का चित्र उभरता है और हमें रोमांच और स्वाभिमान से भर देता है।
साँस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए यदि बाम्बे से मुंबई, मद्रास से चेन्नई, कलकत्ता से कोलकाता और पूना से पुणे किए जा सकते हैं तो छतरपुर से छत्रपुर क्यों नहीं ?
आशा है इस पहल में निहित संदेश जन जन तक पहुँचेगा और समग्र भारतवासी बुन्देलखण्ड के इस गौरवशाली नगर को उसके मूल नाम से पुनः अलंकृत कराने में सहयोग कर महाराज छत्रसाल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।
– हरि शंकर
पूर्व प्राचार्य, उच्च शिक्षा