नगर से लगभग 3 किलोमीटर दूर महोबा रोड पर स्थित हर्बल गार्डन सन् 2004 में वन विभाग द्वारा बनाया गया था। लगभग 100 एकड़ क्षेत्र में फैले इस उद्यान में 25 लाख रुपए की लागत से औषधीय पौधे रोपे गए थे। अश्वगंधा, मूसली, सतावर, सर्पगंधा, कलिहार, केवाँच, हरड़, बहेड़ा, आँवला आदि के हजारों पौधे यहाँ पर लगाए गए थे। इसके रख-रखाव के लिए शासन द्वारा पर्याप्त राशि भी आवंटित की गई थी।
यह उद्यान उपयोगिता की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ नगर का एक दर्शनीय मनोरम स्थान भी रहा है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण सहज ही लोगों आकर्षित करते रहे हैं। अवकाश के दिनों में अक्सर लोग पिकनिक मनाने के लिए यहाँ आते रहते थे। सन् 2004 से 2005 तक यह उद्यान अपने चरमोत्कर्ष पर था जिसका प्रमाण प्रस्तुत चित्रों में है जो दिसम्बर 2005 में लिए गए थे।
समय के साथ यह उद्यान अपने गौरवशाली अतीत को सहेजने में असफल सिद्ध हुआ और उचित रख-रखाव के अभाव में इसकी दुर्दशा की कहानी आरंभ हो गई। पहले चरण में इस उद्यान में औषधीय पौधों के नाम पर केवल आँवले के वृक्ष बचे। इस अवनति के दूसरे चरण में उद्यान में मात्र घास और खरपतवार का साम्राज्य रह गया और नाम मात्र का हर्बल गार्डन वचा। विनाश के अंतिम अंतिम चरण में, हर्बल गार्डन का नाम और मानचि़त्र दर्शाने वाली भित्तिका भी धराशाई हो गई।
आज इस स्थान पर वन विभाग के कार्यालय औा भवन हैं। किन परिस्थितियों में यह सब घटित हुआ, इसका कोई विवरण अथवा उल्लेख प्राप्त नहीं है। आज इस उद्यान का अस्तित्व उपरोक्त चित्रों में शेष है जो दिसम्बर, 2005 में लिए गए थे और जिनका महत्व नगर के इतिहास में निहित है। नई पीढ़ी को कदाचित ज्ञात भी न होगा कि इस नगर में कभी एक मनोरम हर्बल गार्डन भी था!